नई दिल्ली। भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं पर आधारित ‘सनातन अर्थव्यवस्था’ आज वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बन गई है। मंदिरों, तीर्थस्थलों, पूजा-पाठ, और धार्मिक आयोजनों के जरिए यह अर्थव्यवस्था हर साल 25 लाख करोड़ रुपये का कारोबार करती है। यह आंकड़ा 100 छोटे देशों की कुल GDP से भी अधिक है।
कैसे बनती है ‘सनातन अर्थव्यवस्था’?
सनातन अर्थव्यवस्था में पूजा सामग्री, धार्मिक पर्यटन, मूर्तियां, वस्त्र, यज्ञ-हवन के उत्पाद, आयुर्वेदिक दवाएं, और मंदिरों में होने वाले दान शामिल हैं। इसके अलावा धार्मिक त्योहारों, जैसे कुंभ मेले और दीपावली, का भी बड़ा योगदान है।
प्रमुख योगदानकर्ता
- धार्मिक पर्यटन: वाराणसी, तिरुपति, अमृतसर, और ऋषिकेश जैसे तीर्थस्थल हर साल करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं।
- दान: मंदिरों में मिलने वाला दान, जैसे तिरुपति बालाजी और श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, इस अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा बनता है।
- पूजा सामग्री: फूल, धूप, चंदन, वस्त्र, और अन्य सामग्री की बिक्री से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है।
रोजगार का बड़ा स्रोत
सनातन अर्थव्यवस्था करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देती है। कारीगर, शिल्पकार, पुजारी, टूर गाइड, और स्थानीय दुकानदार इस प्रणाली का अभिन्न हिस्सा हैं।
100 देशों की GDP से अधिक
100 से अधिक छोटे देशों की कुल GDP 25 लाख करोड़ रुपये के आसपास है, जबकि भारत की सनातन अर्थव्यवस्था अकेले इतनी बड़ी है। यह न केवल भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे धार्मिक परंपराएं आर्थिक विकास में योगदान देती हैं।
वैश्विक स्तर पर प्रभाव
सनातन परंपराओं पर आधारित उत्पाद और सेवाएं अब वैश्विक स्तर पर भी लोकप्रिय हो रही हैं। आयुर्वेदिक उत्पादों, योग, और भारतीय त्योहारों का क्रेज पश्चिमी देशों में तेजी से बढ़ रहा है।
भविष्य की संभावनाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि सनातन अर्थव्यवस्था आने वाले वर्षों में और मजबूत होगी। भारत में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने, योग और आयुर्वेद के प्रचार, और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से इसे वैश्विक बाजार तक पहुंचाने की योजना है।
“सनातन अर्थव्यवस्था न केवल भारत की आत्मा है, बल्कि इसकी आर्थिक शक्ति का भी प्रतीक बन रही है।”
(डेस्क रिपोर्ट, देशपक्ष)