नई दिल्ली। घी भारतीय परंपरा और रसोई का अभिन्न हिस्सा रहा है। खासतौर पर बिलोना विधि से तैयार किया गया घी, जिसे आयुर्वेद में ‘अमृत’ की संज्ञा दी गई है, आज फिर चर्चा में है। यह पारंपरिक विधि न केवल घी को शुद्ध बनाती है, बल्कि इसे स्वास्थ्य के लिए अमूल्य भी बनाती है।
क्या है बिलोना विधि?
बिलोना विधि में सबसे पहले देसी गाय के दूध से दही जमाया जाता है। इसके बाद दही को मथकर मक्खन निकाला जाता है। इस मक्खन को धीमी आंच पर गर्म करके शुद्ध घी तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में न तो रासायनिक तत्वों का उपयोग होता है और न ही मिलावट की संभावना रहती है।
आयुर्वेद में बिलोना घी का महत्व
आयुर्वेद में बिलोना विधि से बने घी को सबसे शुद्ध और गुणकारी माना गया है। चरक संहिता में इसे अमृत के समान बताया गया है। आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, बिलोना घी शरीर की अग्नि को संतुलित करता है, पाचन को सुधारता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।
घी के लाभों पर वैज्ञानिक मुहर
वैज्ञानिक शोधों ने भी यह पुष्टि की है कि बिलोना घी में ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन ए और एंटीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह हृदय को स्वस्थ रखने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और त्वचा को चमकदार बनाने में सहायक है।
आधुनिक युग में बढ़ी मांग
बिलोना विधि से बने घी की शुद्धता और गुणों के कारण आज इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में लोग इसे पारंपरिक भोजन का अभिन्न हिस्सा बनाने लगे हैं।
पुराणों में भी है उल्लेख
स्कंद पुराण और भागवत पुराण में उल्लेख मिलता है कि बिलोना विधि से बने घी का उपयोग यज्ञ और हवन में किया जाना चाहिए, क्योंकि यह वातावरण को शुद्ध करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
बाजार में नकली घी से रहें सावधान
आजकल बाजार में कई कंपनियां शुद्ध घी का दावा करती हैं, लेकिन उनमें से कई रसायनों से युक्त होती हैं। आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार, केवल बिलोना विधि से बने घी का ही सेवन करना चाहिए।
“शुद्धता और स्वास्थ्य का प्रतीक है बिलोना विधि से बना घी। यह न केवल भोजन को दिव्य बनाता है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य को भी संवारता है।”
(डेस्क रिपोर्ट, देशपक्ष)