नई दिल्ली: टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क ने हाल ही में जनसंख्या में गिरावट को लेकर अपनी चिंता जताई है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा करते हुए इसे दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बताया। मस्क ने उस ग्राफ को साझा किया, जो टेस्ला ओनर्स सिलिकॉन वैली अकाउंट द्वारा पोस्ट किया गया था। इस ग्राफ में 2018 से लेकर 2100 तक के विभिन्न देशों की जनसंख्या में बदलाव को दर्शाया गया है, जिसमें भारत, चीन, पाकिस्तान, नाइजीरिया, और अमेरिका जैसी प्रमुख राष्ट्रों के आंकड़े शामिल थे।
भारत और चीन में जनसंख्या में गिरावट का अनुमान
वर्ष 2023 में, इंग्लैंड और वेल्स में प्रति महिला औसत बच्चों की संख्या 1.44 तक गिर गई, जो कि अब तक का सबसे कम आंकड़ा है। विश्व स्तर पर भी, प्रजनन दर में गिरावट आई है, और 1963 में औसतन 5.3 बच्चों के मुकाबले आज यह आंकड़ा आधे से भी कम हो चुका है।
भारत और चीन दोनों की जनसंख्या 2018 में लगभग 1.5 अरब थी, लेकिन 2100 तक भारत की जनसंख्या लगभग 1.1 अरब तक घटने का अनुमान है, जो लगभग 400 मिलियन की कमी को दर्शाता है। वहीं, चीन की जनसंख्या में बहुत बड़ी गिरावट होने की संभावना है, जो 731 मिलियन तक घट सकती है, जो 731 मिलियन की भारी कमी होगी। इस गिरावट के साथ नाइजीरिया दुनिया का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा, जहां जनसंख्या 790.1 मिलियन होने का अनुमान है।
महत्वपूर्ण कारण जो जनसंख्या में गिरावट का कारण बन रहे हैं
विशेषज्ञों का मानना है कि जनसंख्या में गिरावट के प्रमुख कारणों में प्रजनन दर में कमी, पलायन और बुजुर्ग जनसंख्या का बढ़ना शामिल है। कई देशों में महिला के औसत बच्चों की संख्या 2.1 से कम है, जो स्थिर जनसंख्या बनाए रखने के लिए जरूरी आंकड़ा है।
1. प्रजनन दर में गिरावट: विश्वभर में प्रजनन दर में गिरावट आई है, जो विशेष रूप से विकसित देशों में अधिक देखी जा रही है। भारत और चीन जैसे देशों में भी यह गिरावट आने की संभावना है। उदाहरण के लिए, चीन में सिंगल चाइल्ड पॉलिसी के कारण जन्म दर में कमी आई है, जबकि भारत में भी शहरीकरण और शिक्षा के बढ़ने से परिवारों में औसत बच्चों की संख्या घट रही है।
2. बुजुर्ग जनसंख्या का बढ़ना: बुजुर्गों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है, जिससे एक उम्रदराज जनसंख्या का निर्माण हो रहा है। यह स्थिति कई देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुकी है, क्योंकि युवा कामकाजी शक्ति की कमी हो रही है और श्रम शक्ति पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
3. पलायन: पलायन भी एक बड़ा कारण बनता जा रहा है। कई युवा बेहतर रोजगार अवसरों के लिए विदेशों में जा रहे हैं, जिससे मातृभूमि में जनसंख्या घट रही है। खासकर विकासशील देशों से होने वाला पलायन इस समस्या को और बढ़ा रहा है।
2100 तक के जनसंख्या पूर्वानुमान
2020 की रिपोर्ट के अनुसार, चीन और भारत में जनसंख्या में गिरावट तेजी से हो सकती है, जबकि अमेरिका में प्रजनन दर के नीचे रहने के बावजूद, सकारात्मक प्रवासन के कारण इसकी जनसंख्या स्थिर रहेगी। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी प्रवासन के कारण जनसंख्या स्थिर रहने की उम्मीद है।
4. 2100 तक नाइजीरिया की जनसंख्या में वृद्धि: रिपोर्ट के अनुसार, नाइजीरिया की जनसंख्या 2100 तक बढ़कर 790.1 मिलियन हो सकती है, जबकि भारत और चीन की जनसंख्या में भारी गिरावट आएगी। नाइजीरिया में प्रजनन दर अभी भी उच्च है, जिससे यह भविष्य में एक बड़ा जनसंख्या केंद्र बन सकता है।
5. पाकिस्तान और अन्य विकासशील देशों का भविष्य: पाकिस्तान, इंडोनेशिया और अन्य विकासशील देशों में 2100 तक जनसंख्या में थोड़ा सा बदलाव हो सकता है। हालांकि, यह वृद्धि उतनी तेज नहीं होगी, जितनी कि अफ्रीकी देशों में हो रही है। इन देशों में प्रजनन दर काफी अधिक बनी हुई है।
एलन मस्क की चिंता और भविष्य की संभावना
एलन मस्क ने पहले भी वैश्विक जनसंख्या में गिरावट पर चिंता जताई थी और चेतावनी दी थी कि “जनसंख्या संकट आ रहा है।” उनका मानना है कि इस चुनौती का समाधान तलाशने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थिर और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।
मस्क का कहना है कि “यह एक वैश्विक संकट बन चुका है, और यदि अब कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में यह समस्या और गंभीर हो सकती है। हमें लोगों की प्रजनन दर को बढ़ाने के लिए अनुकूल नीतियों की आवश्यकता है।”
समापन
जनसंख्या की गिरावट का प्रभाव केवल विकासशील देशों पर नहीं, बल्कि विकसित देशों पर भी पड़ने वाला है। इसलिए यह समय की आवश्यकता है कि सरकारें और समाज इस दिशा में कदम उठाएं और एक संतुलित और स्थिर जनसंख्या की दिशा में काम करें। यह न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होगा, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित करेगा।
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